Santan Gopal Stotra – संतान गोपाल स्तोत्र
संतान गोपाल स्तोत्र एक प्रसिध्द प्राचीन वैदिक स्तुति है, जो की द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, संतान गोपाल स्तोत्र मैं कान्हा की बाल स्वरूप की स्तुति की गयी है, यह santan gopal stotra न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि निसंतान दाम्पत्तियोंको के लिए चमत्कारी माना गया है, जो संतान की प्राप्ति चाहते है या निसंतान है, उन्हें ब्रह्ममुहूर्त या एकादशी के दिन पूजा के समय इस स्तोत्र पढ़ना अत्यंत शुभ होता है।
संतान गोपाल स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकोनन्दनं हरिम्।
सुतसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम्। १ ।
मैं पुत्रकी प्राप्तिके लिये लक्ष्मीपति, कमलनयन, देवकीनन्दन तथा सर्वपापहारी, मधुसूदन, श्रीकृष्णको नमस्कार करता हूँ।
नमाम्यहं वासुदेवं सुतसम्प्राप्तये हरिम्।
यशोदाङ्कगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम्। २।
मैं पुत्रप्राप्तिके उद्देश्यसे उन वासुदेव श्रीहरिको प्रणाम करता हुँ, जो यशोदाके अंकमें बालगोपालरूपसे विराजमान हैं और नन्दको आनन्द दे रहे हैं।
अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम्।
नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा। ३।
अपनेको पुत्रकी प्राप्तिके लिये मैं मुनिवन्दित वसुदेवदेवकीनन्दन गोविन्दको सदा नमस्कार करता हूँ।
गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम्।
पुत्रसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुङ्गवम्। ४।
मैं पुत्र पानेकी कामनासे उन यदुकुलतिलक श्रीकृष्णको नमस्कार करता हूँ, जो साक्षात् कमलापति अच्युत (विष्णु) होकर भी गोपबालकरूपसे गौओंकी रक्षामें लगे हुए हैं।
पुत्रकामेष्टिफलदं कञ्जाक्षं कमलापतिम्।
देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम। ५।
मुझे पुत्रकी प्राप्ति हो, इसके लिये मैं पुत्रेष्टियज्ञका फल देनेवाले कमलनयन लक्ष्मीपति देवकीनन्दन श्रीकृष्णको वन्दना करता हूँ।
पद्मापते पदानेत्र पदानाभ जनार्दन।
देहि मे तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते। ६।
पद्मापते! कमलनयन! पद्मनाभ! जनार्दन! श्रीश! वासुदेव! जगत्पते! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
यशोदाङ्कगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।
अस्माकं पुत्रलाभाय नमामि श्रीशमच्युतम्। ७।
यशोदाके अंकमें बालरूपसे विराजमान तथा अपनी महिमासे कभी च्युत न होनेवाले मुनिवन्दित लक्ष्मीपति गोविन्दको मैं प्रणाम करता हूँ। ऐसा करनेसे मुझे पुत्रकी प्राप्ति हो।
श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिहरणाच्युत।
गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन। ८।
श्रीपते! देवदेवेश्वर! दीन-दुःखियोंको पीड़ा दूर करनेवाले अच्युत! गोविन्द! मुझे पुत्र दीजिये। जनार्दन! मैं आपको प्रणाम करता हुँ।
भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो। ९।
भक्तोंकी कामना पूर्ण करनेवाले गोविन्द! भक्तकी रक्षा कोजिये। शुभदायक! रुक्मिणीवल्लभ! प्रभो! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये।
रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा ।
भक्तमन्दार पद्याक्ष त्वामहं शरणं गतः। १०।
रुक्मिणीनाथ! सर्वेश्वर! मुझे सदाके लिये पुत्र दीजिये। भक्तोंको इच्छा पूर्ण करनेके लिये कल्पवृक्षस्वरूप कमलनयन श्रीकृष्ण! मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ११।
देवकीपुत्र! गोविन्द! वासुदेव! जगन्नाथ! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरणमें आया हँ।
वासुदेव जगद्वन्यय श्रीपते पुरुषोत्तम।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। १२।
विश्ववन्द्य वासुदेव! लक्ष्मीपते ! पुरुषोत्तम! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरणमें आया हुँ।
कञ्जाक्ष कमलानाथ परकारुणिकोत्तम।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। १३।
कमलनयन! कमलाकान्त! दूसरोंपर दया करनेवालोमें सर्वश्रेष्ठ श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये। मैं आपकी शरणमें आया हूँ।
लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। १४।
लक्ष्मीपते ! पद्मनाभ ! मुनिवन्दित मुकुन्द ! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरणमें आया हूँ।
कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा।
नमामि पुत्रलाभार्थ सुखदाय बुधाय ते। १५।
आप कार्य-कारणरूप, सुखदायक एवं विद्वान् हैं। मैं पुत्रकी प्राप्तिके लिये आप वासुदेवको सदा नमस्कार करता हूँ।
राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे।
तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे। १६।
राजीवनेत्र (कमलनयन) ! रावणारे (रावणके शत्रु) ! हरे! कवे (विद्वन्) ! देवेश्वर! विष्णो! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप मुझे पुत्र प्रदान कीजिये ।
अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते। १७।
जगदीश्वर! मैं अपने लिये पुत्र-प्राप्तिके उद्देश्यसे आपकी आराधना करता हूँ । रमावल्लभ! वासुदेव! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये ।
श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते। १८।
मानिनी श्रीराधाके मानका अपहरण करनेवाले तथा अपनी आराधना करनेवाली गोपांगनाओंके वस्त्रको यमुनातटसे हटानेवाले (उन्हें सुख प्रदान करनेवाले) जगन्नाथ! वासुदेव! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये ।
अस्माकं पुत्रसम्प्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन।
रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित। १९।
यदुनन्दन! रमापते! वासुदेव! मुनिवन्दित मुकुन्द! हमें पुत्रक प्राप्ति कराइये ।
वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव।
पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो। २०।
वासुदेव! मुझे बेटा दीजिये। माधव! मुझे तनय (संतान) दीजिये। श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। महाप्रभो! मुझे वत्स (बच्चा) दीजिये ।
डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव ।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन। २१।
श्रीकृष्ण! मुझे डिंभक (पुत्र) दीजिये। रघुनन्दन! मुझे आत्मज (औरस पुत्र) दीजिये। भक्तोंकी अभिलाषा पूर्ण करनेके लिये कल्पवृक्षस्वरूप नन्दनन्दन! मुझे तनय दीजिये ।
नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते।
कमलानाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित। २२।
श्रीकृष्ण! वासुदेव! जगत्पते! कमलानाथ! गोविन्द! मुनिवन्दित मुकुन्द! मुझे आनन्ददायक पुत्र प्रदान कोजिये ।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।
सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे। २३।
प्रभो! यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो दूसरा कोई मुझे शरण देनेवाला नहीं है। आप ही मेरे शरणदाता हैं। मुझे पुत्र दीजिये। सम्पत्ति दीजिये। सम्पत्ति और पुत्र दोनों प्रदान कीजिये ।
यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनम्।
वन्देऽहं पुत्रलाभार्थ कपिलाक्षं हरिं सदा। २४।
यशोदाजीके स्तनोंके दुग्धपानके रसको जाननेवाले और उनका स्तनपान करनेवाले, भूरे नेत्रोंसे सुशोभित यदुनन्दन श्रीकृष्णकी मैं सदा वन्दना करता हूँ। इससे मुझे पुत्रकी प्राप्ति हो ।
नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो।
रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते। २५।
देवेश्वर ! नन्दनन्दन! प्रभो! मुझे आनन्ददायक पुत्र दीजिये। रमापते! वासुदेव! जगन्नाथ! मुझे धन और पुत्र दीजिये ।
पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव ।
अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते। २६।
माधव! पुत्र और धन (दीजिये), धन और पुत्र (दीजिये), मुझे पुत्र प्रदान कोजिये। श्रीपते! हमारे दीनतापूर्ण वचनपर ध्यान दीजिये ।
गोपालडिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते।
अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते। २७।
गोपकुमार गोविन्द! रमावल्लभ वासुदेव ! जगन्नाथ! मुझे पुत्र दीजिये, सम्पत्ति दीजिये ।
मद्वाञ्छितफलं देहि देवकोनन्दनाच्युत।
मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन। २८।
देवकीनन्दन! अच्युत! मुझे मनोवांछित फल (पुत्र) दीजिये। यदुनन्दन! मेरी पुत्रविषयक प्रार्थनाको सफल एवं धन्य कोजिये ।
याचेऽहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसम्पदम्।
भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो। २९।
भक्तोंके लिये चिन्तामणिस्वरूप राम! भक्तवांछाकल्पतरो! महाप्रभो! मैं आपसे धन और पुत्रको याचना करता हूँ। मुझे पुत्र और धन-सम्पत्ति दीजिये ।
आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम्।
अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन। ३०।
रघुनन्दन! आप सदा मुझे आनन्ददायक आत्मज, पुत्र, कुमार, डिंभक (बालक), सुत, अर्भक (बच्चा) एवं तनय (बेटा) दीजिये ।
वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम्।
अस्माकं पुत्रसम्प्राप्यै सदा गोविन्दमच्युतम्। ३१ ।
मैं अपने लिये पुत्रकी प्राप्तिके उद्देश्यसे संतानप्रद गोपाल, माधव, भक्तोंका मनोरथ पूर्ण करनेवाले अच्युत गोविन्दकी वन्दना करता हूँ ।
ओमकारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम्।
क्लींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम्। ३२।
ओमकारयुक्तं गोपाल, श्रीयुक्त यदुनन्दन तथा क्लांयुक्त देवकीपुत्र यदुनाथको मैं प्रणाम करता हूँ (अर्थात् ` ३ श्रीं क्लीं’ इन तीनों बीजोंसे युक्त “देवकीसुत गोविन्द……’ इत्यादि मन्त्रका मैं आश्रय लेता हूँ) ।
वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत।
देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो। ३३।
वासुदेव! मुकुन्द! ईश्वर! गोविन्द! माधव! अच्युत! श्रीकृष्ण! रमानाथ! महाप्रभो! मुझे पुत्र दीजिये ।
राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो।
समस्तकाम्यवरद् देहि मे तनयं सदा। ३४।
गोविन्द! कपिलाक्ष! हरे! प्रभो! सम्पूर्ण कमनीय मनोरथोंकी सिद्धिके लिये वर देनेवाले श्रीकृष्ण! मुझे सदाके लिये पुत्र दीजिये ।
अब्जपदानिभं पदावृन्दरूप जगत्पते।
देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव। ३५।
नीलकमलसमूहके समान श्यामसुन्दर रूपवाले जगन्नाथ! रमानायक! माधव! मुझे जलज–कमलके सदृश मनोहर एवं श्रेष्ठ सत्पुत्र प्रदान कीजिये ।
नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो। ३६।
अजगर और वरुणके दूतोंसे नन्दजीकी रक्षा करनेवाले! पृथ्वीपालक ! यदुनन्दन ! गोविन्द ! प्रभो! रुक्मिणीवल्लभ श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत।
गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम्। ३७।
अपने सेवकोंकी इच्छा पूर्ण करनेके लिये कल्पवृक्षस्वरूप ! गोविन्द! मुकुन्द! माधव! अच्युत! गोपाल! पुण्डरीकाक्ष (कमलनयन)! मुझे संतान और सम्पत्ति दीजिये ।
यदुनायक पदोश नन्दगोपवधूसुत।
देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक। ३८।
यदुनायक! लक्ष्मीपते! यशोदानन्दन! श्रीधर! प्राणवल्लभ! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
अस्माकं वाञ्छितं देहि देहि पुत्रं रमापते।
भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते। ३९।
रमापते! भगवन्! सर्वेश्वर! वासुदेव! जगत्पते! श्रीकृष्ण! हमें मनोवांछित वस्तु दीजिये। पुत्र प्रदान कोजिये ।
रमाहृदयसम्भार सत्यभामामनःप्रिय।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो। ४०।
रमा (लक्ष्मी)-को अपने वक्ष:स्थलमें धारण करनेवाले! सत्यभामाके हृदयवल्लभ! तथा रुक्मिणीके प्राणनाथ! प्रभो! मुझे पुत्र दीजिये ।
चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव।
अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते। ४१ ।
चन्द्रमा और सूर्यरूप नेत्र धारण करनेवाले गोविन्द! कमलनयन ! माधव! देव! जगदीश्वर! हमें भाग्यशाली श्रेष्ठ पुत्र प्रदान कीजिये ।
कारुण्यरूप पद्याक्ष पदानाभसमर्चित।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकोनन्दनन्दन। ४२।
करुणामय! कमलनयन! पद्मनाभ श्रीविष्णुसे सम्मानित देवकोनन्दनन्दन श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये ।
देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते।
समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा। ४३।
देवकीपुत्र ! श्रीनाथ! वासुदेव ! जगत्पते! समस्त मनोवांछित फलोंको देनेवाले श्रीकृष्ण! मुझे सदा पुत्र दीजिये ।
भक्तमन्दार गम्भीर शङ्कराच्युत माधव।
देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते। ४४।
भक्तवांछाकल्पतरो ! गंभीर स्वभाववाले कल्याणकारी अच्युत! माधव! ग्वालबालोंपर स्नेह करनेवाले श्रीपते! मुझे पुत्र दीजिये ।
श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो। ४५।
श्रीकान्त ! वसुदेवनन्दन ! ईश्वर! देवकोके प्रिय पुत्र! भक्तोंके लिये कल्पवृक्षरूप! जगत्प्रभो! मुझे पुत्र दीजिये ।
जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे।
वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो। ४६।
जगन्नाथ! रमानाथ! पृथ्वीनाथ! दयानिधे! वासुदेव! ईश्वर! सर्वेश्वर! प्रभो! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ४७।
श्रीनाथ! कमलदललोचन ! वासुदेव ! जगत्पते! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः । ४८ ।
अपने दासोंके लिये कल्पवृक्ष! गोविन्द! भक्तोंकी इच्छापूर्तिके लिये चिन्तामणि-स्वरूप प्रभो! श्रीकृष्ण! मैं आपकी शरणमें आया हूँ, मुझे पुत्र प्रदान कीजिये ।
गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः । ४९।
गोविन्द! पुंडरीकाक्ष ! रमानाथ! महाप्रभो! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन।
मत्पुत्रफलसिद्धयर्थं भजामि त्वां जनार्दन ५०।
श्रीनाथ! कमलदललोचन।! गोविन्द! मधुसूदन! जनार्दन! मैं अपने लिये पुत्ररूप फलकी सिद्धिके निमित्त आपकी आराधना करता हूँ ।
स्तन्यं पिबन्तं जननीमुखाम्बुजं विलोक्य मन्दस्मितमुञ्चलाङ्गम्।
स्पृशन्तमन्यस्तनमङ्गलीभि-वन्दे यशोदाङ्कगतं मुकुन्दम्। ५१ ।
जो मैया यशोदाके मुखारविन्दकी ओर देखते हुए मन्द मुसकराहटके साथ उनके एक स्तनका दूध पी रहे हैं और दूसरे स्तनका अंगुलियाँसे स्पर्श कर रहे हैं तथा जिनका प्रत्येक अंग उज्ज्वल आभासे प्रकाशित होता है, मैया यशोदाके अंकमें बैठे हुए उन बाल-मुकुन्दकी मैं वन्दना करता हूँ ।
याचेऽहं पुत्रसन्तानं भवन्तं पद्मलोचन।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ५२।
कमललोचन! मैं आपसे पुत्र-संततिकी याचना करता हूं । श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
अस्माकं पुत्रसम्पत्तेश्चिन्तयामि जगत्पते।
शीघ्रं मे देहि दातव्यं भवता मुनिवन्दित। ५३।
जगत्पते! हमें पुत्रको प्राप्ति हो, इस उद्देश्यसे हम आपका चिन्तन करते हैं। आप मुझे शीघ्र पुत्र प्रदान कीजिये। मुनिवन्दित श्रीकृष्ण! आपको मुझे अवश्य मेरी प्रार्थित वस्तु-—संतान देनी चाहिये ।
वासुदेव जगन्नाथ श्रीपते पुरुषोत्तम।
कुरु मां पुत्रदत्तं च कृष्ण देवेन्द्रपूजित। ५४।
वासुदेव ! जगन्नाथ! श्रीपते! पुरुषोत्तम! देवेन्द्रपूजित श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र-दान कीजिये ।
कुरु मां पुत्रदत्तं च यशोदाप्रियनन्दन।
मह्यं च पुत्रसंतानं दातव्यं भवता हरे। ५५।
यशोदाके प्रिय नन्दन! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये। हरे! आपको मुझे पुत्ररूप संतानका दान अवश्य करना चाहिये ।
वासुदेव जगन्नाथ गोविन्द देवकोसुत।
देहि मे तनयं राम कौसल्याप्रियनन्दन। ५६।
वासुदेव! जगन्नाथ! गोविन्द! देवकीकुमार! कौसल्याके प्रिय पुत्र राम! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये।
पद्मपत्राक्ष गोविन्द विष्णो वामन माधव।
देहि मे तनयं सीताप्राणनायक राघव। ५७।
कमलदललोचन! गोविन्द! विष्णो! वामन! माधव! सीताके प्राणवल्लभ! रघुनन्दन! मुझे पुत्र दीजिये ।
कञ्जाक्ष कृष्ण देवेन्द्रमण्डित मुनिवन्दित।
लक्ष्मणाग्रज श्रीराम देहि मे तनयं सदा। ५८।
कमलनयन श्रीकृष्ण! देवराजसे अलंकृत एवं पूजित हरे! लक्ष्मणके बड़े भैया मुनिवन्दित श्रीराम! मुझे सदाके लिये पुत्र प्रदान कोजिये ।
देहि मे तनयं राम दशरथप्रियनन्दन।
सीतानायक कञ्जाक्ष मुचुकुन्दवरप्रद। ५९।
दशरथके प्रिय नन्दन श्रीराम ! सीतापते! कमलनयन ! मुचुकुन्दको वर देनेवाले श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये ।
विभीषणस्य या लङ्का प्रदत्ता * भवता पुरा ।
अस्माकं तत्प्रकारेण तनयं देहि माधव। ६०।
माधव! आपने पूर्वकालमें जो विभीषणको लंकाका राज्य दिया था, उसी प्रकार हमें पुत्र दीजिये ।
भवदीयपदाम्भोजे चिन्तयामि निरन्तरम्।
देहि मे तनयं सीताप्राणवल्लभ राघव। ६१।
सीताके प्राणवल्लभ रघुनन्दन! मैं आपके चरणारविन्दोंका निरन्तर चिन्तन करता हूँ, मुझे पुत्र प्रदान कीजिये ।
राम मत्काम्यवरद पुत्रोत्पत्तिफलप्रद।
देहि मे तनयं श्रीश कमलासनवन्दित। ६२।
मुझे मनोवांछित वर और पुत्रोत्पत्तिरूप फल देनेवाले श्रीराम! ब्रह्माजीके द्वारा वन्दित लक्ष्मीपते! आप मुझे पुत्र दीजिये ।
राम राघव सीतेश लक्ष्मणानुज देहि मे।
भाग्यवत्पुत्रसंतानं दशरथात्मज श्रीपते। ६३।
लक्ष्मणके बड़े भाई! सीताके प्राणवल्लभ! दशरथकुमार! रघुकुलनन्दन! श्रीराम! श्रीपते! आप मुझे भाग्यशाली पुत्ररूप संतान दीजिये ।
देवकीगर्भसंजात यशोदाप्रियनन्दन।
देहि मे तनयं राम कृष्ण गोपाल माधव। ६४।
देवकोके गर्भसे उत्पन्न हुए यशोदाके लाड्ले लाल ! गोपाल कृष्ण! राम! माधव! मुझे पुत्र दीजिये ।
कृष्ण माधव गोविन्द वामनाच्युत शङ्कर।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक । ६५।
माधव! गोविन्द! वामन! अच्युत! कल्याणकारी श्रीपते! गोपबालकनायक ! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये ।
गोपबाल महाधन्य गोविन्दाच्युत माधव।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते। ६६।
गोपकुमार ! सबसे बढ़कर धन्य! गोविन्द! अच्युत! माधव! वासुदेव! जगत्पते! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
दिशतु दिशतु पुत्रं देवकीनन्दनोऽयं दिशतु दिशतु शीघ्र भाग्यवत्पुत्रलाभम्।
दिशतु दिशतु श्रीशो राघवो रामचन्द्रो दिशतु दिशतु पुत्रं बंशविस्तारहेतोः। ६७।
ये भगवान् देवकीनन्दन मुझे पुत्र दें, पुत्र दें। शीघ्र ही भाग्यवान् पुत्रको प्राप्ति करायें। श्रीसीताके स्वामी! रघुकुलनन्दन श्रीरामचन्द्र! मेरे वंशके विस्तारके लिये मुझे पुत्र प्रदान करें, पुत्र प्रदान करें ।
दीयतां वासुदेवेन तनयो मत्प्रियः सुतः ।
कुमारो नन्दनः सीतानायकेन सदा मम। ६८।
वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण तथा सीतापति भगवान् श्रीराम सदा मुझे आनन्ददायक कुमारोपम प्रिय पुत्र प्रदान करें ।
राम राघव गोविन्द देवकोसुत माधव।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक। ६९।
राम! राघव ! गोविन्द! देवकोपुत्र। माधव! श्रीपते! गोपबालकनायक श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये ।
वंशविस्तारकं पुत्रं देहि मे मधुसूदन।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः। ७०।
मधुसूदन ! मुझे वंशका विस्तार करनेवाला पुत्र दीजिये! पुत्र दीजिये !! पुत्र दीजिये!!! मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
ममाभीष्टसुतं देहि कंसारे माधवाच्युत।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः। ७१।
कंसारे ! माधव ! अच्युत! मुझे मनोवांछित पुत्र प्रदान कीजिये! पुत्र दीजिये!! पुत्र दीजिये!!! मैं आपकी शरणमें आया हुँ ।
चन्द्रार्ककल्पपर्यन्तं तनयं देहि माधव।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः। ७२।
माधव! जबतक चन्द्रमा, सूर्य और कल्पको स्थिति रहे, तबतकके लिये मुझे पुत्रपरम्परा प्रदान कोजिये! पुत्र दीजिये! ! पुत्र दीजिये!!! मैं आपकी शरणमें आया हुँ ।
विद्यावन्तं बुद्धिमन्तं श्रीमन्तं तनयं सदा।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दन प्रभो। ७३।
प्रभो! देवकीनन्दन श्रीकृष्ण! आप सदा मेरे लिये विद्वान्, बुद्धिमान् और धनसम्पन्न पुत्र प्रदान कीजिये ।
नमामि त्वां पदानेत्र सुतलाभाय कामदम्।
मुकुन्दं पुण्डरीकाक्षं गोविन्दं मधुसूदनम्। ७४ ।
कमलनयन श्रीकृष्ण! मैं पुत्रकी प्राप्तिके लिये समस्त कामनाओंके दाता आप पुंडरीकाक्ष श्रीकृष्ण मुकुन्द मधुसूदन गोविन्दको प्रणाम करता हूँ ।
भगवन् कृष्ण गोविन्द सर्वकामफलप्रद ।
देहि मे तनयं स्वामिंस्त्वामहं शरणं गतः । ७५ ।
सम्पूर्ण मनोवांछित फलोंके दाता! गोविन्द! स्वामिन्! भगवन्! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरणमें आया हुँ ।
स्वामिंस्त्वं भगवन् राम कृष्ण माधव कामद।
देहि मे तनयं नित्यं त्वामहं शरणं गतः । ७६।
स्वामिन्! भगवन्! राम! कृष्ण! कामनाओंके दाता माधव! मुझे सदा पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हुँ ।
तनयं देहि गोविन्द कञ्जाक्ष कमलापते।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः । ७७।
गोविन्द! कमलनयन! कमलापते! मुझे पुत्र दीजिये! पुत्र दीजिये!! पुत्र दीजिये!!! मैं आपकी शरणमें आया हूँ
पद्मापते पदानेत्र प्रद्युम्नजनक प्रभो।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः। ७८ ।
लक्ष्मीपते! कमललोचन! प्रद्यु्नको जन्म देनेवाले प्रभो! मुझे पुत्र दीजिये! पुत्र दीजिये ! ! मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
शङ्खचक्रगदाखड्गशाङ्गपाणे रमापते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः । ७९।
अपने हाथोंमें शंख, चक्र, गदा, खड्ग और शार्ङ्गधनुष धारण करनेवाले रमापते! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये। मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
नारायण रमानाथ राजीवपत्रलोचन।
सुतं मे देहि देवेश पदापद्यानुवन्दित। ८०।
नारायण! रमानाथ! कमलदललोचन! देवेश्वर! कमलालया लक्ष्मीसे वन्दित श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
राम राघव गोविन्द देवकोवरनन्दन।
रुक्मिणीनाथ सर्वेश नारदादिसुराचित। ८१।
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक। ८२।
राम! राघव! गोविन्द! देवकोके श्रेष्ठ पुत्र! रुक्मिणीनाथ! सर्वेश्वर! नारदादि महर्षियों तथा देवताओंसे पूजित देवकीकुमार गोविन्द! वासुदेव! जगत्पते! श्रीकान्त! गोपबालकनायक ! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
मुनिवन्दित गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ८३।
मुनिवन्दित गोविन्द ! रुविमणीवल्लभ ! प्रभो! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये! मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
गोपिकार्जितपङ्केजमरन्दासक्तमानस ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ८४।
गोपियांँद्वारा लाकर समर्पित किये गये कमलोंके मकरन्दमें आसक्त चित्तवाले श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
रमाहृदयपङ्केजलोल माधव कामद।
ममाभीष्टसुतं देहि त्वामहं शरणं गतः। ८५।
लक्ष्मीके हदयकमलके लिये लोलुप माधव ! समस्त कामनाओंके दाता श्रीकृष्ण! मुझे मनोवांछित पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
वासुदेव रमानाथ दासानां मङ्गलप्रद।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ८६।
अपने सेवकोंके लिये मंगलदायक रमानाथ! वासुदेव ! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
कल्याणप्रद गोविन्द मुरारे मुनिवन्दित।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ८७।
कल्याणप्रद गोविन्द! मुनिवन्दित मुरशत्रु श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
पुत्रप्रद मुकुन्देश रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ८८।
पुत्रदाता मुकुन्द! ईश्वर! रुक्मिणीवल्लभ प्रभो! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपको शरणमें आया हूँ ।
पुण्डरीकाक्ष गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ८९।
पुण्डरीकाक्ष! गोविन्द! वासुदेव ! जगदीश्वर! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
दयानिधे वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ९०।
दयानिधे! वासुदेव! मुनिवन्दित मुकुन्द! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
पुत्रसम्पत्प्रदातारं गोविन्दं देवपूजितम्।
वन्दामहे सदा कृष्णं पुत्रलाभप्रदायिनम्। ९१।
पुत्र और सम्पत्तिके दाता, पुत्रलाभदायक, देवपूजित गोविन्द श्रीकृष्णकी हम सदा वन्दना करते हैं ।
कारुण्यनिधये गोपीवल्लभाय मुरारये।
नमस्ते पुत्रलाभार्थ देहि मे तनयं विभो। ९२।
प्रभो! आप करुणाके सागर, गोपियोंके प्राणवल्लभ और मुर नामक दैत्यके शत्रु हैं, पुत्रको प्राप्तिके लिये आपको मेरा नमस्कार है, मुझे पुत्र प्रदान कीजिये ।
नमस्तस्मै रमेशाय रुक्मिणीवल्लभाय ते ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक। ९३।
लक्ष्मीके स्वामी तथा रुक्मिणीके प्राणवल्लभ! आप भगवान् श्रीकृष्णको नमस्कार है। गोपबालकोंके नायक श्रीकान्त! मुझे पुत्र दीजिये ।
नमस्ते वासुदेवाय नित्यश्रीकामुकाय च।
पुत्रदाय च सर्पेन्द्रशायिने रङ्गशायिने। ९४।
सदा ही श्रीजीको कामना रखनेवाले आप वासुदेवको नमस्कार है। आप पुत्रदायक, नागराज शेषकी शय्यापर शयन करनेवाले तथा श्रीरंगक्षेत्रमें सोनेवाले हैं, आपको नमस्कार है ।
रङ्गशायिन् रमानाथ मङ्गलप्रद माधव।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक । ९५।
रंगशायी रमानाथ! मंगलदायक माधव ! गोपबालकनायक श्रीपते! मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
दासस्य मे सुतं देहि दीनमन्दार राघव।
सुतं देहि सुतं देहि पुत्रं देहि रमापते। ९६।
दीनोंके लिये कल्पवृक्षस्वरूप रघुनन्दन! मुझ दासको पुत्र दीजिये। रमापते! पुत्र दीजिये! पुत्र दीजिये! ! पुत्र दीजिये!!!
यशोदातनयाभीष्टपुत्रदानरतः सदा।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ९७ ।
सदा मनोवांछित पुत्र देनेमें तत्पर रहनेवाले यशोदानन्दन श्रीकृष्ण! मैं आपकी शरणमें आया हूँ, मुझे पुत्र प्रदान कोजिये ।
मदिष्टदेव गोविन्द वासुदेव जनार्दन।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। ९८ ।
मेरे इष्टदेव गोविन्द! वासुदेव! जनार्दन! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरणमें आया हूँ ।
नीतिमान् धनवान् पुत्रो विद्यावांश्च प्रजायते।
भगवंस्त्वत्कृपायाशच वासुदेवेन्द्रपूजित। ९९ ।
भगवन्! इन्द्रपूजित वासुदेव! आपकी कृपासे नीतिज्ञ, धनवान् और विद्वान् पुत्र उत्पन्न होता है ।
यः पठेत् पुत्रशतकं सोऽपि सत्पुत्रवान् भवेत्।
श्रीवासुदेवकथितं स्तोत्ररत्नं सुखाय च। १००।
जो श्रीवासुदेवकथित पुत्रशतकका पाठ करता है, वह भी उत्तम पुत्रसे सम्पन्न होता है। यह स्तोत्ररत्न सुखको भी प्राप्ति करानेवाला है ।
जपकाले पठेन्नित्यं पुत्रलाभं धनं श्रियम्।
ऐश्वर्य राजसम्मानं सद्यो याति न संशयः। १०१।
जो प्रतिदिन जपके समय इसका पाठ करता है, उसे तत्काल पुत्रलाभ होता है तथा वह शीघ्र ही धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य एवं राजसम्मान प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है ।
॥ इति सन्तानगोपालस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ इस प्रकार संतानगोपालस्तोत्र पूर्ण हुआ॥
Read Here Bhaktamar Strotra in Sanskrit
संतान गोपाल स्तोत्र हिंदी पीडीएफ
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