Baglamukhi Vrat Katha: देवी को संसार के विभिन्न समस्याओं और शत्रुओं से रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। उनकी विशेष पूजा और अनुष्ठान से भयंकर विरोधियों और शत्रुओं का नाश होता है। ।
इसके अलावा, बगलामुखी देवी के उपासना से काला जादू, असामाजिक संबंधों से मुक्ति, वाद-विवाद में विजय प्राप्ति, न्याय प्राप्ति, शीघ्र विवाह , धन की प्राप्ति, स्तम्भन सिद्धि ,और गुप्त कार्यों की सिद्धि होती है। कोर्ट- कचहरी, मुकदमों, पुलिस केसों , अभियोगों, झूठे लांछन आदि में विजय व छुटकारा मिलता है।
Baglamukhi Vrat Katha – माता बगलामुखी व्रत कथा – पौराणिक कथा
बगलामुखी देवी की कथाएँ और महत्वपूर्ण व्रतों को हिंदू धर्म में विशेष माना जाता है। उनके उपासकों द्वारा उन्हें शक्ति और समृद्धि का स्रोत माना जाता है।
भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा
“हे प्रिये ! अब मै तुमसे बगलामुखी देवी व्रत कथा कहता हूँ। अपनी स्तंभन शक्ति से जिन्होंने तीनों लोको को बांध रखा है। जिसके कारण समस्त सृष्टि अपने- अपने स्थान पर गतिशील होकर भी नियत कक्षा मे टिकी हुयी है।
आपस मे टकराकर नष्ट नहीं हो रही। जिनकी पूजा करने से सर्वत्र विजय होती है, तथा कोई भी तंत्र-मंत्र हानि नहीं पंहुचाता। ”
भगवान आदिनाथ ने कथा प्रारंभ की ” यह प्राकट्य कथा समुद्र मंथन के समय की है। वैसे तो बगलामुखी देवी सभी युगों व कल्पो मे विद्यमान रहती हैं।
परम दयालु देवी पीतांबरा शीघ्र प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करने वाली हैं। इनकी पूजा का असुरो व दुष्ट स्वभाव वाले मनुष्यो द्वारा दुरूपयोग होता है। तो इसे गोपनीय कर दिया जाता है।
वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) समुद्र मंथन:
एक समय देवों और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए मिलकर समुद्र मंथन का निश्चय किया।मंदराचल को मथानी व नागराज वासुकी को रस्सी बना कर वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) को समुद्र मंथन प्रारंभ कर दिया।
जल प्रलय व महाविष:
जिसके घूमने की गति व घूर्णन के दबाव से समुद्र का समस्त जल पृथ्वी को डूबाकर नष्ट करने को उद्यत होने लगा। साथ ही नागराज वासुकि की भयंकर विष- फुंकार (संसार का प्रचंडतम विष) , जो श्वांस- प्रश्वांस के रूप में असुरों की मृत्यु का कारण बन रही थी।
इन दोनों समस्याओं से श्री हरी सहित हम सभी लोग चिंतित हो गए। श्री हरी समस्या के हल के लिए हरिद्वा सरोवर पर देवी की तपस्या व ध्यान करने लगे।
वैशाख शुक्ल अष्टमी:
देवी बगलामुखी ने वैशाख शुक्ल अष्टमी को श्री हरी को दर्शन देकर मनोरथ पूरा करने का वचन दिया।
उस प्रलयकालीन समुद्री तूफ़ान रूपी सुनामी को रोककर सागर को वहीं स्तंभित कर दिया। साथ ही विष की ऊर्जा को भी शीतल दाहमुक्त एवं हानिरहित मनोरथ पूर्ण होने तक कर दिया।
जिससे सृष्टि की रक्षा व समुद्र मंथन संभव हो सका। जब मंथन के दबाव से मंदराचल पाताल मे धसने लगा तो विष्णु जी ने कूर्मावतार लेकर मंदराचल को धारण किया। देवी पीतांबरा ने मंदराचल को कूर्मावतार की पीठ पर स्थिर कर दिया।
देवी द्वारा असुरों की बुद्धि का स्तंभन:
देवी बगलामुखी के बुद्धि पर प्रभाव से असुरो ने कोई उत्पात समुद्र मंथन के समय नहीं किया। वे केवल मदिरा व घोड़ा लेकर भी भ्रमित शांत रहे। अमृत निकलने पर जब देवों व दैत्यो मे संघर्ष होने लगा तो देवी ने दैत्यो की संपूर्ण बुद्धि हर ली।
वे श्री हरी के मोहिनी रूप मे उलझकर मदिरा को अमृत समझ कर पी गये।
इस तरह संपूर्ण समुद्र मंथन 14 रत्न उनकी कृपा से प्राप्त हुये। Baglamukhi Vrat Katha को जो सुनता व सुनाता है। उसके समस्त मनोरथ पूरे होकर सारे कष्ट दूर होते हैं।
माँ बगलामुखी व्रत विधि
- यह व्रत बृहस्पतिवार को किया जाता है |
- सुबह उठकर नहा लें।
- यदि संभव हो, तो पीला कपड़ा ही पहने नहीं तो कोई भी चलेगा।
- मन मे माँ बगलामुखी नमस्तुभ्यं का जाप करते रहें |
Baglamukhi Vrat Katha – पूजा मे पीली सामग्री का प्रयोग करें :-
- हल्दी या केसर, बेसन का लड्डू या पीली बर्फी। पीला फूल या माँ का पसंदीदा चंपा पुष्प, पीला वस्त्र, किसमिस, पीली सरसों आदि |
- घर के मंदिर मे पीला वस्त्र बिछाकर उस पर पीली सरसों डाल दें।
- माँ की यन्त्र सहित फोटो पश्चिम दिशा मुख करके स्थापित कर दें।
- सामने पीतल के कलश मे जल मे हल्दी डाल कर रख दें।
- 7-14 या 21 व्रत का संकल्प लेकर माँ की कथा पढ़ें एवं आरती करें।
- पीली सरसों थोड़ी घर-कार्यस्थल पर डाल कर शेष पंछिंयों को डाल दें।
- जल भी थोड़ा सभी पर छिड़ककर पौंधो मे डाल दें |
- व्रत मे एक समय मीठा भोजन लें व एक समय फलाहार करें |
- उद्यापन के दिन 7 या 14 स्त्रियों को हल्दी /केसर टीका लगा कर लड्डू का प्रसाद दें।
- भेंट मे माँ की फोटो व कथा-आरती की पत्रक दें |
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